भारतीय रिजर्व बैंक , गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs) अथवा अकर्जदारों द्वारा नहीं चुकाए गए ऋणों की बढ़ती समस्या के समाधान हेतु ‘बैड बैंक’ (Bad Bank) की स्थापना का पुनः विचार कर रही है | कोविड महामारी से पहले तनाव का सामना कर रहे क्षेत्रों में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs), विद्युत्, इस्पात, रियल एस्टेट और विनिर्माण सम्मिलित हैं। इस पृष्ठभूमि में बैड बैंक की स्थापना काफी महत्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि
विश्व में बैड बैंक स्थापित करने का सबसे पहला विचार अमेरिका में 1988 दिया गया था | फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल में कई साल से बैड बैंक काम कर रहे है , इन बैंकों का काम बैड लोन की रिकवरी हैं | भारत में बैड बैंक की स्थापना का सबसे पहला विचार 2017 के आर्थिक सर्वे में दिया गया था और इसका नाम ‘PARA’ (Public sector asset Rehabilitation Agency) रखने का सुझाव दिया था |
बैड बैंक कैसे कार्य करती है ?
यदि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने किसी को 100 करोड़ का लोन दिया और उसे रिकवरी के रूप में उसे केवल 70 करोड़ रुपये मिले अर्थात 30 करोड़ रुपये वापस नहीं आये तो ये 30 करोड़ SBI के अकाउंट बुक में बैड लोन घोषित हो जाता है | यहाँ से बैड बैंक का कार्य शुरू होता है , अब SBI इस बैड लोन को बैड बैंक को बेच देता है और बदले में 20 करोड़ रुपये ले लेता है | बैड लोन की रिकवरी की ज़िम्मेदारी बैड बैंक पे होती है | यदि बैड बैंक 30 करोड़ की रिकवरी करती है तो 10 करोड़ का मुनाफा और यदि 10 करोड़ की रिकवरी करता है तो 10 करोड़ का घाटा |
बैड बैंक से लाभ
इससे कमर्शियल बैंक अपने कोर बैंकिंग एक्टिविटी पर पूरा ध्यान दे सकेंगे |
कमर्शियल बैंकों का NPA कम होगा जिससे उनके ऊपर जनता का भरोसा बढेगा |
कमर्शियल बैंकों की वित्तीय हालात सुधरेगी जिससे वे अन्य क्षेत्रों को जरूरत के हिसाब से लोन दे सकेंगे |
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